संदेश

2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

दुनिया का भ्रमण कर मकनपुर में ठहरे जिंदा शाह मदार

  दुनिया का भ्रमण कर मकनपुर में ठहरे जिंदा शाह मदार  एक बार समुद्र के रास्ते और ६ बार पैदल किया विश्व का भ्रमण RAHUL TRIPATHI बिल्हौर। हिंदुस्तान आने पर मदार साहब ने अजमेर के ख्वाजा से की थी मुलाकात हजरत सैयद बदीउद्दीन  जिंदाशाह कुतबुल मदार ६ बार दुिनयां का भ्रमण कर वापस सीरिया लौट गए थे। पर वह सातवीं बार हिंदुस्तान आए तो मकनपुर में ठिकाना बना लिया। और यहीं के होकर रह गए। इससे पहले जिंदाशाह मदार ने दुनिया का भ्रमण एक बार समुद्र के रास्ते तो ६ बार पैदल किया। चौथी बार हिंदुस्तान आने पर उन्होंने अजमेर में ख्वाजा साहब से मुलाकात की थी। मोहम्मद गजनवी ने जब अजमेर पर १७ वीं बार हमला किया था। उस समय जिंदाशाह मदार अजमेर में मौजूद थे। जानकारी के मुताबिक जिंदाशाह मदार का जन्म २४२ हिजरी में सीरिया के शहर में हुआ था। २८२ हिजरी में जिंदाशाह मदार पहली बार समुद्र के रास्ते गुजरात के खम्माद कसबे में आए थे। यहां कुछ समय रुकने के बाद वापस सीरिया चले गए। इसके बाद ४०४ हिजरी में पैदल सीरिया से अजमेर पहुंचे। यहां दीनी इस्लाम की तालीम देने के बाद वह फिर वापस सीरिया लौट गए...

सूफी परंपरा के पुरोधा मदार का संदेश वतन से मोहब्बत ही इंसानियत

  सूफी परंपरा के पुरोधा मदार का संदेश वतन से मोहब्बत ही इंसानियत      दुनियां भर में है १४४२ मलंगों के चिल्ले मलंग की हैं ३ लाख ७५ हजार गदिदयां  राहुल त्रिपाठी बिल्हौर।   ३० हजार के आसपास मदारी मलंग मलंग सन्यासी जिंदा शाह मदार के नाम से पूरी दुनियां में फैले हैं। दीन दुनिया के श्क और आराम से परे रहकर इंसानियत के लिए जीवन जीने वाली जमात है मलंगों की। इनका मकसद दुनिया की तमाम उठा-पटक से दूर रहकर मानव को पहले मानवता का पाठ पढ़ाना होता है। आज पूरी दुनियां में इन मलंगों के १४४२ चिल्ले और ३ लाख ७५ हजार गदिदयां हैं। आजीवन बाल न कटवाने, काले वस्त्र पहनने, जंगलों और सुनसान स्थानों पर रहकर इंसानियत का पाठ पढ़ाने वाले मदारी मलंग चार कुनबों से ताल्लुक रखते हैं। इनमें आशिकान, तालिबान, दीवानगान तथा खादिमान से ही मलंगों की जमात निकलती है। मलंगों के ताजदार मासूम अली शाह के मुताबिक मलंग बनना आसान नहीं है। मलंग उसको बनाया जाता है, जिसकी चाहत इंसानियत के लिए जीवन कुर्बान करना होता है। परिजनों की इच्छा भी इसमें जरूरी होती है। मलंग को तालीम देने के बाद उसस...

हजरत सैयद बदीउद्‌दीन अहमद जिन्दाशाह कुतुबुल मदार रजितालाअन्हा की खानकाह

चित्र
  मकनपुर शरीफ विशेषांक   यह मास तहसील बिल्हौर के लोगों के लिए बेहद खास है। मकनपुर शरीफ के इतिहास को याद करते हुए यहां सालाना उर्स/ मेला शुरू हो चुका है। मकनपुर की सरजमी का इतिहास वर्तमान की पीढ ी नही जानती उसके लिए यह बताना जरूरी है कि यह पावन भूमि आजादी की पहली चिंगारी के वीर सपूतों की खाक अपने में दफन किए हुए है। लोग भूल चुके हैं, लेकिन हजरत सैयद बदीउद्‌दीन अहमद जिन्दाशाह कुतुबुल मदार रजितालाअन्हा की खानकाह के चारों ओर फैली मकनपुर की बस्ती में हजरत अबू तालिब उर्फ मजनू शाह मलंग की टूटी-फूटी मजार देखकर गुलजार करते हैं। मजनू शाह मलंग के किस्से अब क्षेत्रवासियों ने भुला दिए हैं। यह मजनूशाह वही है जो जिंदाशाह कुतुबुल मदार से प्रेरणा लेकर १७६० में पहली आजादी की जंग छेड ी थी। उस वक्त ब्रितानी हुकूमत में ऐसा करने में किसी भी राजा ने हिमायत नही की थी। विद्रोही संगठन में उस समय मजनू शाह के संग करीम शाह, रोशनशाह, देवी चौधरानी, भवानी ठाकुर, भवानंद तथा गिरि और शैव संप्रदाय के साधु-सन्यासी थे। ये सब हथियार के तौर पर सोटा और चिमटा का प्रयोग करते थे। मजनूशाह ने शबखून नाम युद्ध...