मदार साहब की दरगाह पर सालाना उर्स में जियारत को पहुंचते देश-विदेश के जायरीन
राहुल त्रिपाठी की रिपोर्ट
हजरत सैयद बदीउद्दीन अहमद जिंदा शाह कुतुबुलमदार रजितालाअन्हो का सालाना उर्स मुबारक बुधवार से शुरू हो गया। दिन में दरगाह पर गलाफ पोशी हुई। गुरुवार को मदारुल आलमीन के आस्ताने पर कश्ती को ले जाया जाएगा। कश्ती को मलंग हजरात चौकों पर भी ले जाया जाता है। यह कश्ती हजरत जानेमन जन्नती रहमतुल्लाह अलैह की रवायत से जुड़ी है। तीन दिन तक चलने वाले उर्स का मुख्य कार्यक्रम गुरुवार कौ और शुक्रवार आयोजित किया जाएगा। उर्स में शिरकत करने कौ बुधवार शाम तक गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, दिल्ली, बिहार तथा यूपी के करीब ३० जिलों के जायरीन मकनपुर पहुंच गए हैं। हजारौं की तादाद में पहुंचे लौगौं के लिए ठहरने और खाने की व्यवस्था की गई है। जिंदा शाह मदार के नाम पर कई स्थानों पर लंगर की व्यवस्था है। उर्स में प्रमुख आकर्षण मदारी मलंगों की जमात का मकनपुर में ठिकाना बन गया है। देश के कोने-कोने से एक हजार मलंग (सन्यासी) मकनपुर पहुंच गए हैं। इनके ताजदार मासूम अली शाह मदारी मलंग हैं। उर्स में आने वाले जायरीन मदार साहब की दरगाह पर मन्नत मांगने के बाद मलंगों के ताजदार से दुआ करनेे पहुंच रहे हैं।
मकनपुर लाई गई कश्ती
बिल्हौर। उर्स के मौके पर दरगाह पर कश्ती लाई जाती है। इस कश्ती को दरगाह ले जाया जाता है, फिर तख्तनशीं के पास रखा जाता है। यहीं मलंग मदारी शगल-ए-दम्माल करते हैं। जौनपुर से आई कश्ती को चौक पर रखा गया है। विदित हौ कि मकनपुर में ५२ चौक हैं। इसमें एक चौक पर कश्ती रखी जाती है तो अन्य चौकों पर मदारी मलंग अपना ठिकाना बनाते हैं।
वतन से मोहब्बत ही इंसानियत कहलाती है
दुनियां भर में है १४४२ मलंगों के चिल्ले
मलंग की हैं ३ लाख ७५ हजार गदिदयां
३० हजार के आसपास मदारी मलंग मलंग सन्यासी जिंदा शाह मदार के नाम से पूरी दुनियां में फैले हैं। दीन दुनिया के श्क और आराम से परे रहकर इंसानियत के लिए जीवन जीने वाली जमात है मलंगों की। इनका मकसद दुनिया की तमाम उठा-पटक से दूर रहकर मानव को पहले मानवता का पाठ पढ़ाना होता है। आज पूरी दुनियां में इन मलंगों के १४४२ चिल्ले और ३ लाख ७५ हजार गदिदयां हैं। आजीवन बाल न कटवाने, काले वस्त्र पहनने, जंगलों और सुनसान स्थानों पर रहकर इंसानियत का पाठ पढ़ाने वाले मदारी मलंग चार कुनबों से ताल्लुक रखते हैं। इनमें आशिकान, तालिबान, दीवानगान तथा खादिमान से ही मलंगों की जमात निकलती है। मलंगों के ताजदार मासूम अली शाह के मुताबिक मलंग बनना आसान नहीं है। मलंग उसको बनाया जाता है, जिसकी चाहत इंसानियत के लिए जीवन कुर्बान करना होता है। परिजनों की इच्छा भी इसमें जरूरी होती है। मलंग को तालीम देने के बाद उससे मकसद के बारे में पूछा जाता है। यदि वह मलंगों की जमात में तालीम लेने के बाद दीन दुनियां की सेवा अपने स्तर से करना चाहता है, तो उसे उसके परिजनों के सुपुर्द कर दिया जाता है। वह मलंगों की जमात में रहकर सेवा करना चाहता है तो उसे किसी न किसी चिल्ले या गद्दी पर भेज दिया जाता है। ताजदार ने बताया कि पूरी दुनियां में इस समय मदारी मलंगों के १४४२ चिल्ले और ३ लाख ७५ हजार गदिद्यां हैं। इनमें १६ चिल्ले अकेले कोलंबों में हैं। उन्होंने बताया कि मौजूदा समय में मलंगों की जमात कम हो रही है। मासूम अली शाह ने एक सवाल पर बताया कि मलंग का मतलब मर्यादा पुरुषोत्तम होता है। वतन से मोहब्बत ही इंसानियत कहलाती है। मलंगों का मुख्य उद्देश्य देश दुनियां की सलामती और इंसानियत पैदा करना है।
करोड़ों की संपत्ति के वारिस हैं मलंगों के चिल्ले
दुनिया भर में मदारी मलंगों के १४४२ चिल्लों के पास अकूत संपत्ति है। गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, नेपाल और श्रीलंका की राजधानी कौलंबौ में स्थित चिल्लों के पास सैकड़ों बीघा जमीन, मकान, दुकानें तथा अन्य इमारतें हैं। गुजरात के बीजापुर (मेहसाणा) के अमीन बाबा के चिल्ले के पास जहां अकूत संपत्ति है, वहीं कटेरा शिवपुरी के रफीक बाबा के पास ७५० बीघा जमीन, ५२ दुकानें तथा ६४ कमरों का आशियाना है। वहीं ग्वालियर के हाजी आशिक अली बाबा मलंग के पास करोड़ों की अचल संपत्ति है। ताजदार मासूम अली शाह के मुताबिक इस संपत्ति के लिए जिंदा शाह मदार के नाम पर वक्फ बोर्ड है। यह संपत्ति इसी बोर्ड की अधिकार क्षेत्र में है।
एमएस की डिग्री फिर भी बने मलंग
देश दुनियां में ऐशो आराम की ख्वाहिश तो हर किसी को होती है, पर ग्वालियर के हाजी आशिक अली शाह मलंग इससे बिल्कुल विरत रहे। मलंग बनने के बाद डाक्टरी की पढ़ाई की और एमएस की डिग्री हासिल की। दीन दुनियां के लोगों की सेवा करने के लिए डाक्टरी पेशे को अख्तियार नहीं किया। आज वह मलंगों की एक गद्दी के जिम्मेदार होकर जिंदाशाह मदार के कारवां को आगे बढ़ाते हुए इस्लाम और इंसानियत का संदेश दे रहे हैं।
दुनियां का भ्रमण कर मकनपुर में ठहरे जिंदा शाह मदार
हजरत सैयद बदीउद्दीन अ््हमद जिंदाशाह कुतबुल मदार ६ बार दुिनयां का भ्रमण कर वापस सीरिया लौट गए थे। पर वह सातवीं बार हिंदुस्तान आए तो मकनपुर में ठिकाना बना लिया। और यहीं के होकर रह गए। इससे पहले जिंदाशाह मदार ने दुनिया का भ्रमण एक बार समुद्र के रास्ते तो ६ बार पैदल किया। चौथी बार हिंदुस्तान आने पर उन्होंने अजमेर में ख्वाजा साहब से मुलाकात की थी। मोहम्मद गजनवी ने जब अजमेर पर १७ वीं बार हमला किया था। उस समय जिंदाशाह मदार अजमेर में मौजूद थे। जानकारी के मुताबिक जिंदाशाह मदार का जन्म २४२ हिजरी में सीरिया के शहर में हुआ था। २८२ हिजरी में जिंदाशाह मदार पहली बार समुद्र के रास्ते गुजरात के खम्माद कसबे में आए थे। यहां कुछ समय रुकने के बाद वापस सीरिया चले गए। इसके बाद ४०४ हिजरी में पैदल सीरिया से अजमेर पहुंचे। यहां दीनी इस्लाम की तालीम देने के बाद वह फिर वापस सीरिया लौट गए। वहीं ५९२ हिजरी में वह चौथी बार हिंदुस्तान आए और अजमेर के ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती से मुलाकात की। यहां से जिंदाशाह मदार कालपी, जौनपुर, नेपाल कपिलवस्तु, चीन के ताशकंद पहुंचे और दीनी तालीम देने के बाद फिर सीरिया लौट गए। इसके बाद वह फिर हिंदुस्तान आए । यहां वह गुजरात, महाराष्ट्र, केरल होते हुए श्रीलंका की राजधानी कोलंबो पहुंचे। यहां से फिर सीरिया लौट गए। छठवीं बार जिंदाशाह मदार फिर हिंदुस्तान आए और यहां से वह सफर करते हुए थाईलैंड, वर्मा और मलेशिया होकर सीरिया फिर वापस हो गए। सातवीं बार ८१८ हिजरी में जिंदाशाह मदार हिंदुस्तान के मकनपुर चले आए। इसके बाद वह मकनपुर के ही होकर रह गए। सज्जादानशीं मुजीबुल बाकी और मुफ्ती इसराफील के मुताबिक जिंदा शाह को सपना आया था कि कन्नौज के पास एक तालाब है, और वहीं उनका ठिकाना होगा। बताया कि जहां जिंदाशाह की दरगाह है वहां कभी तालाब हु्आ करता था। उनके लाखों मुरीद दुनिया में हैं। हर साल उर्स और वसंत पंचमी के मौके पर मेला लगता है।
१८ गज लंबा है सज्जादानशीनों का शजरा
मकनपुर शरीफ में सज्जादानशीन बनने की परंपरा सदियों पुरानी है। वर्तमान के सज्जादानशीन ने १८ गज लंबा शजरा (वंश वृक्ष) दिखाते हुए अब तक की परंपरा की जानकारी दी। यह शजरा काफी जर्जर हो चुका है। यह भोजपत्र पर फारसी में लिखा गया है। इसमें सज्जादानशीन के वंश के १५ लोगों का नाम दर्ज है। मान्यता है कि सज्जादानशीन के वंश का बड़ा पुत्र ही इस ओहदे का हकदार होता है। ये हैं मकनपुर शरीफ में अब तक के सज्जादानशीन
- १-सैययद अबू मोहम्मद अरगून
२-सैययद अबुल फैयाज अरगून
३-सैययद फजलउल्ला
४- सैययद बाबा लाट दरबारी
५- सैययद अब्दुल रहीम
६- सैययद मुहीबुल्ला
७-सैययद अब्दुल गफूर
८-सैययद अब्दुल हकीम
९-सैययद मोहम्मद मुराद
१०- सैययद गुलाम अली
११-सैययद हाफिज मोहम्मद मुराद
१२-सैययद अब्दुल बाकी
१३- सैययद सरदार अली
१४- सैययद मोहम्मद जफर हवीब
१५-सैययद मोहम्मद मुजीबुल बाकी
-अगले उत्तराधिकारी होंगे-सैययद मो. अली जफर मुजीब
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