संत-सूफी परंपरा का देश-दुनिया में मदार साहब ने डाली नींव

- सीरिया से 40 वर्ष की आयु में हिंदोस्तान व्यापारिक जहाज से आए - 40 दिन जहां रुके वहां मदार साहब के चिल्ले आज भी मदारि यत को बढ़ा रहे आगे - देश के कई प्रदेशों में मदार साहब के सिलसिले को आगे बढ़ा रहे मलंग राहुल त्रिपाठी बिल्हौर। सैयद बद्दीउद्दीन जिंदाशाह मदार ने हिंदोस्तान में संत-सूफी परंपरा की नीवं डाली और गांव-गांव अपनी-अपनी परंपराओं से आमखास को जागरुक किया। बिना किसी भेदभाव और धार्मिक बेड़ियों के मदार साहब से सभी धर्मों के लोगों को इंसानियत की राह पर चलने का पैगाम दिया। मदार साहब कई बार मकनपुर से हज करने के लिए पैदल ही गई और जहां-जहां रुके वहां चिल्ले(इबादत व पैगाम स्थल) बने। इन्हीं चिल्लों से आज तक सैकड़ों मदारिया सिलसिलों को मलंग आगे बढ़ा रहे हैं। मदार को मानने वाले कई मकनपुर के वाशिंदों ने स्वतंत्रता आंदोलन में भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। फेयर कमेटी इंटर कालेज के प्रधानाचार्य और मदार साहब पर बीते कई वर्षों से शोध कर रहे मुक्तिदा हुसैन जाफरी ने बताया कि जिंदाशाह मदार का जन्म २४२ हिजरी में सीरिया के शहर में हुआ था। २८२ हिजरी में जिंदाशाह मदार पहली बार समुद्र के रास्ते गुजरात के खम्...