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गैर मुल्कों के मदार मुरीद, उर्स के मौके पर लगाएंगे आनलाइन अर्जी

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  गैर मुल्कों के मदार मुरीद, उर्स के मौके पर लगाएंगे आनलाइन अर्जी  पाकिस्तान, साउथ अफ्रीका, दुबई, अफगानिस्तान, जर्मनी, जापान में हैं मादार के मुरीद तकनीक के माध्यम से दरगाह के दर्शन और अर्जी लगाने की प्रक्रिया वर्षों से जारी राहुल त्रिपाठी बिल्हौर। देश-दुनिया में सैय्यद बदीउद्दीन जिंदाशाह मदार के सालाना उर्स में सिर्फ देश ही नहीं बल्कि पूरे यूरेशिया के देशों में उनके चाहने वाले  मुरीद रहते हैं।  धार्मिक बीजा न मिलने, आर्थिक अड़चनों व अन्य समस्याओं के कारण जो भी जायरीन मदार की दरगाह नहीं पहुंच पाते वह अब आनलाइन अर्जी और दर्शन के लिए मोबाइल तकनीक से मकनपुर स्थित मदार साहब की दरगाह से जरूर जुड़कर दुआएं करते हैं। बीते कई दशकों से मदार साहब पर शोध कर रहे फेयर कमेटी इंटर कालेज मकनपुर के प्रधानाचार्य सैय्यद मुक्तिदा हुसैन जाफरी ने बताया कि मदार साहब ने अपने जीवन काल में मानव सेवा में बहुत काम किया है वह मकनपुर से सीरिया तक कईबार पैदल ही आए और गए। इस कारण पूरे देश में ही नहीं बल्कि पाकिस्तान, बाग्लादेश, ईरान सहित खाड़ी के कई देशों में उनके कई चिल्ला यानि इबादत स्थल। इन चिल्ल...

संत-सूफी परंपरा का देश-दुनिया में मदार साहब ने डाली नींव

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- सीरिया से 40 वर्ष की आयु में हिंदोस्तान व्यापारिक जहाज से आए - 40 दिन जहां रुके वहां मदार साहब के चिल्ले आज भी मदार‌ि यत को बढ़ा रहे आगे - देश के कई प्रदेशों में मदार साहब के सिलसिले को आगे बढ़ा रहे मलंग राहुल त्रिपाठी बिल्हौर। सैयद बद्दीउद्दीन जिंदाशाह मदार ने हिंदोस्तान में संत-सूफी परंपरा की नीवं डाली और गांव-गांव अपनी-अपनी परंपराओं से आमखास को जागरुक किया। बिना किसी भेदभाव और धार्मिक बेड़ियों के मदार साहब से सभी धर्मों के लोगों को इंसानियत की राह पर चलने का पैगाम दिया। मदार साहब कई बार मकनपुर से हज करने के लिए पैदल ही गई और जहां-जहां रुके वहां चिल्ले(इबादत व पैगाम स्थल) बने। इन्हीं चिल्लों से आज तक सैकड़ों मदारिया सिलसिलों को मलंग आगे बढ़ा रहे हैं। मदार को मानने वाले कई मकनपुर के वाशिंदों ने स्वतंत्रता आंदोलन में भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। फेयर कमेटी इंटर कालेज के प्रधानाचार्य और मदार साहब पर बीते कई वर्षों से शोध कर रहे मुक्तिदा हुसैन जाफरी ने बताया कि जिंदाशाह मदार का जन्म २४२ हिजरी में सीरिया के शहर में हुआ था। २८२ हिजरी में जिंदाशाह मदार पहली बार समुद्र के रास्ते गुजरात के खम्...

सज्जादानशीं ने गद्दी लगाकर मदार के आंगन में की रश्म अदायगी

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- दरगाह पहुंचकर माथा टेककर चादरपोशी करने को उमड़ रहे जायरीनों की जत्थे - मकनपुर पहुचंने के लिए अरौल में वाहन पड़े कम, पैदल जाते दिखे जायरीन   बिल्हौर। मकनपुर ‌स्थित सैयद बद्दीउद्दीन जिंदाशाह मदार के 606 वें उर्स के दूसरे दिन देश के कोने-कोने से जायरीन दरगाह पर इबादत के लिए उमड़े। माथा टेकर, चादरपोशी करने वाले जायरीनों का तांता दिनरात चलता रहा। उधर मदारिया सिलसिला के सदर सैयद मुजीबुल बाकी ने मदार के आंगन में गद्दी लगाई और विविध प्रकार की रस्म अदायगी की। इस दौरान मलंग भी पहुंचे और कश्ती मौके पर आई, जिसमें मलंगों ने दम मदार बेड़ा पार का उदघोष किया। सदर और मलंगों की एक झलक पाने के लिए हजारों की भीड़ मौजूद रही। रविवार भोर पहर मकनपुर की ओर जाने वाले सभी रास्त जायरीनों और उनके वाहनों से खचाखच रहे। जायरीन दम मदार बेड़ा पार के नारे लगाते हुए दरगाह की ओर कूच करते रहे। बड़ी संख्या में जायरीनों ने ईशन नदी में स्नान किया फिर दरगाह पहुंचकर माथा टेकर व चादरपोशी कर रस्म अदायगी की। उधर उर्स के मौके पर मकनपुर में सजे मेला का भी जायरीनों ने जमकर लुफ्त उठाया। दरगाह में उर्स के दूसरे दिन सज्जादानशी सदर...

मदार साहब का 606 वां उर्स आज से, देश-विदेश से आएंगे जायरीन

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मकनपुर स्थित सैयद बद्दीउद्दीन जिंदाशाह मदार  उर्स 2022  मदार की दरगाह पर चादरपोशी, माथा टेकने के साथ ही होगी विविध रस्म अदायगी  अमेरिका, अफ्रीका, ब्रिटेन, ईरान से कई जायरीनों की मकनपुर पहुंचने की उम्मीद  बिल्हौर। क्षेत्र के मकनपुर स्थित सैयद बद्दीउद्दीन जिंदाशाह मदार के 606 वें उर्स के मौके पर उर्स इंतजाम‌ियां कमेटी द्वारा साफ-सफाई और अन्य बुनियादी सुविधाओं के समुचित प्रबंध न होने से उर्स मेला क्षेत्र में आने वाले मलंगों, जायरीनों और दर्शनार्थियों को खासी दिक्कतें उठानी पड़ सकती हैं। आज से आरंभ हो रहे उर्स तीन लाख से अधिक लोगों के पहुंचने की उम्मीद स्थानीय लोगों द्वारा जताई जा रही है। जिसके लिए उच्चाधिकारियों के निर्देश पर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम का भी दावा किया जा रहा है। जानकारी के अनुसार क्षेत्र के मकनपुर स्थित विश्व प्रसिद्ध मदार साहब की दरगाह पर प्रति वर्ष की भांति इस वर्ष भी 10 दिसंबर से 12 दिसंबर 2022 तक सालाना उर्स आयोजित किया जा रहा है। जिसमें पूरे देश से मदार साहबकी सूफी परंपरा को आगे बढ़ा रहे मलंग और उनके चेलों के आने की उम्मीद है। कई मलंगों ने मकनपु...

2022 में नहीं लगेगा मकनपुर मेला

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  राहुल त्रिपाठी  बिल्हौर उत्तर भारत का सबसे बड़ा घोड़ों का मेला मकनपुर पर इस बार भी नहीं होगा। उप जिलाधिकारी बिल्हौर ने क्षेत्र में बढ़ते कोरोना वायरस संक्रमण और आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर मकनपुर मेला न लगाने का निर्णय लिया है।  मकनपुर स्थित मदार साहब की दरगाह इसके बाद से लगातार मेला कमेटी के सदस्यों में मायूसी छाई हुई है, वहीं कई मेला कमेटी के सदस्यों ने कोरोना के बढ़ते प्रकोप देखते हुए इस निर्णय को सही बताया है। "बीते वर्ष 2021 में कोरोना के कारण नहीं लगा था मेला और उर्स" उप जिलाधिकारी बिल्हौर लक्ष्मी एन ने बताया कि कोरोना के बढ़ते मरीजों और तीसरे चरण में बिल्हौर में 20 फरवरी को होने वाले मतदान को देखते हुए मकनपुर मेला न कराने का निर्णय लिया गया है।  2020 में मकनपुर मेला में उमड़े जायरीन   मेला कमेटी के सदस्यों के साथ हुई बैठक में इसका निर्णय लिया गया है। मेला कमेटी के द्वारा कई सदस्यों द्वारा इसबार मेरा लगवाने का प्रस्ताव दिया गया था, लेकिन चिकित्सकों की सलाह और मुख्य चिकित्सा अधिकारी की रिपोर्ट के आधार पर इस बार भी मेला नहीं लगेगा। ...

दुनिया का भ्रमण कर मकनपुर में ठहरे जिंदा शाह मदार

  दुनिया का भ्रमण कर मकनपुर में ठहरे जिंदा शाह मदार  एक बार समुद्र के रास्ते और ६ बार पैदल किया विश्व का भ्रमण RAHUL TRIPATHI बिल्हौर। हिंदुस्तान आने पर मदार साहब ने अजमेर के ख्वाजा से की थी मुलाकात हजरत सैयद बदीउद्दीन  जिंदाशाह कुतबुल मदार ६ बार दुिनयां का भ्रमण कर वापस सीरिया लौट गए थे। पर वह सातवीं बार हिंदुस्तान आए तो मकनपुर में ठिकाना बना लिया। और यहीं के होकर रह गए। इससे पहले जिंदाशाह मदार ने दुनिया का भ्रमण एक बार समुद्र के रास्ते तो ६ बार पैदल किया। चौथी बार हिंदुस्तान आने पर उन्होंने अजमेर में ख्वाजा साहब से मुलाकात की थी। मोहम्मद गजनवी ने जब अजमेर पर १७ वीं बार हमला किया था। उस समय जिंदाशाह मदार अजमेर में मौजूद थे। जानकारी के मुताबिक जिंदाशाह मदार का जन्म २४२ हिजरी में सीरिया के शहर में हुआ था। २८२ हिजरी में जिंदाशाह मदार पहली बार समुद्र के रास्ते गुजरात के खम्माद कसबे में आए थे। यहां कुछ समय रुकने के बाद वापस सीरिया चले गए। इसके बाद ४०४ हिजरी में पैदल सीरिया से अजमेर पहुंचे। यहां दीनी इस्लाम की तालीम देने के बाद वह फिर वापस सीरिया लौट गए...

सूफी परंपरा के पुरोधा मदार का संदेश वतन से मोहब्बत ही इंसानियत

  सूफी परंपरा के पुरोधा मदार का संदेश वतन से मोहब्बत ही इंसानियत      दुनियां भर में है १४४२ मलंगों के चिल्ले मलंग की हैं ३ लाख ७५ हजार गदिदयां  राहुल त्रिपाठी बिल्हौर।   ३० हजार के आसपास मदारी मलंग मलंग सन्यासी जिंदा शाह मदार के नाम से पूरी दुनियां में फैले हैं। दीन दुनिया के श्क और आराम से परे रहकर इंसानियत के लिए जीवन जीने वाली जमात है मलंगों की। इनका मकसद दुनिया की तमाम उठा-पटक से दूर रहकर मानव को पहले मानवता का पाठ पढ़ाना होता है। आज पूरी दुनियां में इन मलंगों के १४४२ चिल्ले और ३ लाख ७५ हजार गदिदयां हैं। आजीवन बाल न कटवाने, काले वस्त्र पहनने, जंगलों और सुनसान स्थानों पर रहकर इंसानियत का पाठ पढ़ाने वाले मदारी मलंग चार कुनबों से ताल्लुक रखते हैं। इनमें आशिकान, तालिबान, दीवानगान तथा खादिमान से ही मलंगों की जमात निकलती है। मलंगों के ताजदार मासूम अली शाह के मुताबिक मलंग बनना आसान नहीं है। मलंग उसको बनाया जाता है, जिसकी चाहत इंसानियत के लिए जीवन कुर्बान करना होता है। परिजनों की इच्छा भी इसमें जरूरी होती है। मलंग को तालीम देने के बाद उसस...